चलो पथिक फिर सुबह हुई फिर जीवन से लड़ना है।।
चढ़ी लालिमा तेजपुंज ले सूरज उदित हुआ है,
तिमिर धरा से भाग रहा फिर पूरब मुदित हुआ है,
यौवन को पुरुषार्थ यज्ञ में बार बार तपना है,
चलो पथिक फिर सुबह हुई फिर जीवन से लड़ना है।।
चढ़ी लालिमा तेजपुंज ले सूरज उदित हुआ है,
तिमिर धरा से भाग रहा फिर पूरब मुदित हुआ है,
यौवन को पुरुषार्थ यज्ञ में बार बार तपना है,
चलो पथिक फिर सुबह हुई फिर जीवन से लड़ना है।।
तोड़ नींद को दहक उठा जब तिग्म अनल श्रम का है,
तप का तेज नहीं तब कम रवि आभा से चमका है,
भाग्य लकीरों को हाथों में तुमको ही गढ़ना है,
चलो पथिक फिर सुबह हुई फिर जीवन से लड़ना है।।
आलस संग ये छाया कोहरा भी छट जाता है,
दृढ़ पंखों के आगे तो अंबर भी घट जाता है,
फड़क उठे खग के पर अब और तुम्हें भी उड़ना है,
चलो पथिक फिर सुबह हुई फिर जीवन से लड़ना है।।
ढल रही निशा की शीत पूर्व से आती किरणों में,
विघ्नपति भी झुक जाएगा श्रम स्वेद के चरणों में,
उस उगते सूर्यभाल पर कृत्य छाप को मढ़ना है,
चलो पथिक फिर सुबह हुई फिर जीवन से लड़ना है।।
- © अरुण तिवारी
तप का तेज नहीं तब कम रवि आभा से चमका है,
भाग्य लकीरों को हाथों में तुमको ही गढ़ना है,
चलो पथिक फिर सुबह हुई फिर जीवन से लड़ना है।।
आलस संग ये छाया कोहरा भी छट जाता है,
दृढ़ पंखों के आगे तो अंबर भी घट जाता है,
फड़क उठे खग के पर अब और तुम्हें भी उड़ना है,
चलो पथिक फिर सुबह हुई फिर जीवन से लड़ना है।।
ढल रही निशा की शीत पूर्व से आती किरणों में,
विघ्नपति भी झुक जाएगा श्रम स्वेद के चरणों में,
उस उगते सूर्यभाल पर कृत्य छाप को मढ़ना है,
चलो पथिक फिर सुबह हुई फिर जीवन से लड़ना है।।
- © अरुण तिवारी