दिखा तेरा प्रचंड रुप विघ्न बन के राह में,
लगा ले अट्टहास भी तू पीर की कराह में,
व वार का प्रवाह नित्य जारी रख ऐ जिंदगी,
किंतु ना रुकेगी मेरी कर्म की ये बंदगी।
क्रूरतम जो चाल हो तू चल तेरी बिसात पर,
रगड़ दे क्षार घाव पे मिला मुझे जो मात पर,
भले हदों को तोड़ कर तू थोप दे दरिंदगी,
किंतु ना रुकेगी मेरी कर्म की ये बंदगी।
मध्य में तेरे मेरे जो युद्ध है छिड़ा हुआ,
अकेला ही सही तू देख हूँ सदा अड़ा हुआ,
हो नियति में मेरे ताज या हो हार गंदगी,
किंतु ना रुकेगी मेरी कर्म की ये बंदगी।
पतवार हौंसलों की धार के विरुद्ध है अड़ी,
व तेरी जिद्द के समक्ष मेरी जिद्द है बड़ी,
टुटे ग़रुर तेरा या मेरा ग़रुर जिंदगी,
किंतु ना रुकेगी मेरी कर्म की ये बंदगी।
डरा नहीं कभी मैं सुनके हार की पुकार को,
तोड़ता बढूँगा तेरे तेवरों की धार को,
अब मिले थपेड़े उम्र भर भी तो ऐ जिंदगी,
किंतु ना रुकेगी मेरी कर्म की ये बंदगी।
- © अरुण तिवारी