मान लिया चैतन्य भरा है शब्दों में अति तेरे,
साहित्यसुधा बहती पाकर शब्दों की गति तेरे,
तेरे शब्दों से कवियों ने माना नौरस घोले,
प्रथम शब्द कितने संतानों ने तेरे ही बोले !!
तू अराध्य होगी दिनकर तुलसी तथा निराला की,
मीरा सूर कबीर तथा भूषण वर्मा बाला की,
तू कुरूक्षेत्र में क्रोध बनी व भ्रमर गीत में प्रेम,
व बनी सुभद्रा में ममत्व भी तुम प्रियतम का क्षेम !!
तुम कवित्त के अधरों का श्रृंगार बनी,
भूषण के शब्दों में तुम अंगार बनी,
व्यक्त हुए उन्नत मन का संसार बनी,
पीड़ित शोषित निर्धन की हुंकार बनी !!
सब भक्तों का भक्तिभाव तुम भजन बनी,
प्रेमचंद के कथासृष्टि की सृजन बनी,
रीति रिवाजों में गीतों में स्वजन बनी,
वंद्य बनी चिंतक की चिंतन मनन बनी !!
गुप्त शब्द में भारत का उत्कर्ष बनी,
प्रणयगीत में मुग्ध मनों का हर्ष बनी,
जन जन का मन मन का तुम संघर्ष बनी,
तुम स्वतंत्रता की वाणी दुर्धर्ष बनी !!
आज बड़े ही चर्चे होंगे राजभवन में तेरे,
बड़े उपक्रम आज करेंगे एक मनन में तेरे,
यश कीर्ती का गान करेंगे मान करेंगे तेरा,
और शपथ भी लेंगे कि उत्थान करेंगे तेरा !!
किंतु न खुश हो कल उठना तुम तड़के भोर सबेरे,
और देखना सभी मिलेंगे तुझसे ये मुख फेरे,
मजबूरी बन रह जाओगी हालत होगी वैसी,
मुंशी की स्वजनों से पीड़ित बुढ़िया काकी जैसी !!
-©अरुण तिवारी