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Sunday 26 November 2017

!!! मंदिर में भगवान नहीं !!!

ईर्ष्या तृष्णा उच्च आस में,
कनक कामिनी बिन व्याकुल है,
काम क्रोध से ग्रसित मलिन मन,
ग्रास छीनने को आतुर है !

छल से बल से नित्य कपट रच,
नित निज साम्राज्य रचाता है,
चूस माँस का लोथ रात में,
दिन मानव राग सुनाता है !

चढ़ता जब मंदिर की सीढ़ी,
आडंबर का लिए सहारा,
तो उन भक्तों के अर्पण से,
कर ही लेते प्रभू किनारा !

अच्छा ही करते हैं प्रभु तो,
करके अस्वीकार अक्षत को,
सदुपार्जित वो नहीं छीन कर,
है निर्बल का छत उन्नत वो !

प्रभु को मूक बधिर मत कहना,
यदि तुझमें अब इंसान नहीं,
तो मृत शरीर तू यही समझ,
अब मंदिर में भगवान नहीं !!

 -©अरुण तिवारी