अबलापन की सोच बुरी है तुम तो जग की जननी हो,
गृहणी मात्र नहीं हो तुम तो नींव धीर ये धरणी हो।
स्वाभिमान हो झाँसी की चित्तौड़ दुर्ग की ज्वाला हो,
कहीं नरम हो सरिता सी तो कहीं चमकती भाला हो।
तुम तो पन्ना धाय तुम्ही बलिदानी हाड़ी रानी हो,
और तुम्ही तो चेन्नम्मा के रण की अटल कहानी हो।
पांचाली का दामन हो तुम जो भी छुआ मिटा है वो,
सारा वंश मिटा है उसका जग में गिरा पिटा है वो।
शक्तिरुप तुम पूज्य सदा से तुम भारत की नारी हो,
सारी गौरव गाथाओ में आधे की हकदारी हो।
तुम सावित्री का व्रत हो चाहो तो यम भी झुक जाए,
तुम उस तृण की पावनता हो डर रावण भी रुक जाए।
तुमने ही तो दूध पिलाकर क्रांति शेर को पाला था,
आजादी के हवन यज्ञ में भगत सिंह को डाला था।
तुम रजनी की शीतलता हो चंडी का क्रोधानल हो,
और तुम्ही तो जीवन रण में लड़ते पौरुष का बल हो।
मानवता के सृजनचक्र की धूरी बनी हुई हो तुम,
रिश्तों में मर्यादाओं की डोरी तनी हुई हो तुम।
ममता की परिभाषा हो तुम करुणा की काया हो तुम,
और बेर हो शबरी की मृदु वचनों की छाया हो तुम।
ऊषा लालिमा पूरब की हो घर की दिया की बाती हो,
डटकर घोर तमस में भी तुम गीत खुशी की गाती हो।
तुम गृहस्थ की रीढ़ बनी कब तुम बिन नव संसार बसा ?
और तुम्हारे आगे कब ये जीवन का अंधार हँसा ?
तुमको भ्रूण में मार कोई कब जीवन सुखी जिया है,
वो पाप भार से दबकर सारा आँसू घूँट पिया है।
तुमने जब भी कदम बढ़ाया कौन क्षेत्र तब छूटा है ?
और तुम्हारा साहस कब किस अवरोधक से टूटा है ?
भूतकाल तुम वर्तमान हो तुम भविष्य की आशा हो,
तुम समाज में भाग्य उदय के आमंत्रण की भाषा हो।
विज्ञान कला वाणिज्य शिखर पर पंचम आज गड़ा है,
संकीर्ण नहीं इस नारी जीवन का विस्तार बड़ा है।
- © अरुण तिवारी