हम तो सीधे बाँसुरी सम दुनिया टेढ़ी तान है,
केशव तुम्हारे सृष्टि में अब छद्म का ही गान है,
या सुदर्शन तर्जनी पर या तो मुरली दो हमें,
रहना मधुर पीकर गरल लगता बड़ा दुष्कर हमें।
यथार्थ अब तुलसी के शब्दों का यहाँ दिखने लगा,
व कौड़ी भर में मुख वचन अब हाँ यहाँ बिकनें लगा,
कृष्ण गीता ज्ञान भर दो या तो दर्शन दो हमें,
नौका यहाँ तो हे मुरारी लग रही दुष्तर हमें।
कब की अस्थि गरिमा की गंगा में केशव बह गई,
अब हे मुरारी बस यहाँ मन की कुटिलता रह गई,
हो खड़े तुम आ के या चातुर्य अपना दो हमें,
कि पैंतरों से चालों से लगता मुरारी डर हमें।
किसके मन में क्या पता क्या सोचता व बोलता है,
दिख मधुर मन में अहर्निश क्या पता विष घोलता है,
तुम्हीं बचा लो कृष्ण या छलना सिखा ही दो हमें,
दिखता कि दो दो रंग में हर आदमी अब तर हमें।
हे मुरारी इस समर में तुम हमारे प्राण बनकर,
घात हर आघात में केशव हमारे त्राण बनकर,
रथ सम्हालो तुम स्वयं या तो विजय वर दो हमें,
कि रण उतरना बिन तुम्हारे लग रहा दुष्कर हमें।
या सुदर्शन तर्जनी पर या तो मुरली दो हमें,
रहना मधुर पीकर गरल लगता बड़ा दुष्कर हमें।
- © अरुण तिवारी